ग्वालियर
25 नवम्बर , अपनी नौकरीयों से और सेवाओं में
शिकायतों को लेकर बिजली कंपनियों के कर्मचारी सीधे अदालत चले जाते थे या मीडिया में
बयानबाजी कर देते थे , ऊर्जा विभाग म प्र शासन और बिजली कंपनीयों
के प्रधान व मुख्य कार्यालय द्वारा अब इस पर रोक लगा दी गयी है ।
उल्लेखनीय
है कि , 51 प्रतिशत शेयर अगर किसी कंपनी
में सरकार के हों तो वह कंपनी सरकारी क्षेत्र की कंपनी कही जाती है , और सरकार को ही उसका चेयरमेन , सी ई ओ , जनरल मैनेजर, मैनेजिंग डायरेक्टर तथा अन्य प्रमुख पदों
पर नियुक्ति के अधिकार मिल जाते हैं , मध्यप्रदेश में बिजली के
क्षेत्र में काम कर रहीं तीनों कंपनियां इसी श्रेणी की कंपनियां हैं ।
सरकारी
क्षेत्र की किसी भी कंपनी में काम करने वाला प्रत्येक कर्मचारी इस प्रकार मध्यप्रदेश
सिविल सेवा आचरण अधिनियम 1965 के अधीन आकर मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण एवं व्यवहार
नियम (म.प्र. सिविल सेवा वर्गीकरण एवं नियंत्रण अपील अधिनियम 1966 ) के अधीन शासित
होता है , इस अधिनयम में यह प्रावधान है कि
कोई भी कर्मचारी या अधिकारी बिना विभाग की पूर्व अनुमति प्राप्त किये या इजाजत लिये
बगैर किसी भी कोर्ट ( अदालत ) में नहीं जायेगा और मीडिया में नहीं जायेगा ,
यदि वह ऐसा करता है तो अधिनियम में उसके लिये शास्ति/ दंड प्रावधानित
है । इसी के तहत अब
कंपनी क्षेत्रांतर्गत वर्तमान में कार्यरत एवं सेवानिवृत्त सभी अधिकारी/कर्मचारी मध्यप्रदेश राज्य मुकदमा प्रबंधन नीति 2018 की कंडिका 20.3 के अनुसार अपनी सेवा संबंधी शिकायतों के लिये न्यायालय में जाने के पूर्व अपनी शिकायत सक्षम आंतरिक शिकायत निवारण समिति के समक्ष अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करेंगे।
सेवा संबंधी मामलों में कंपनी की अधिकार प्रत्यायोजन पुस्तिका (DOP) के अनुसार जिस स्तर के अधिकारी को संबंधित अधिकार प्रदत्त है, कर्मचारी/अधिकारी को शिकायत संबंधी आवेदन उस कार्यालय की शिकायत निवारण समिति के अध्यक्ष को संबोधित कर देना होगा। ऐसे आवेदन प्राप्त होने पर, 8 सप्ताह के अंदर शिकायत निवारण समिति की बैठक आयोजित कर नियमों के परिप्रेक्ष्य में अपने निर्णय से संबंधित शिकायतकर्ता को सूचित करना होगा, यदि शिकायत निवारण समिति शिकायत का निवारण करने में सक्षम नहीं पाती है, तो शिकायती आवेदन उच्च स्तर की शिकायत निवारण समिति को अविलंब अग्रेषित कर सकेगी।
आंतरिक शिकायत निवारण समिति यह भी सुनिश्चित करेगी कि किसी प्रकरण में अपील में जाने के पूर्व इस आशय का प्रमाण-पत्र जारी करे कि कार्मिक का प्रकरण आंतरिक शिकायत निवारण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, किंतु उसका निवारण नहीं हो सका।
सभी शिकायत निवारण समितियां प्रत्येक माह में एक बार बैठक करेगी, वृत्त एवं क्षेत्रीय स्तर पर जहां यह पाया जाता है कि कतिपय प्रकरणों में कंपनी के निर्देशों के पुनःअवलोकन किये जाने की आवश्यकता है तो वह उसे कार्पोरेट स्तर समिति के समन्वयक महाप्रबंधक (स्थापना) को निर्दिष्ट करेंगी।
ऐसे सभी अभ्यावेदनों के निराकरण करने के लिये 8 सप्ताह की एक समय-सीमा नियत की गई है। उक्त के परिपालन में मैदानी कार्यालय प्रत्येक माह की 5 तारीख तक क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से शिकायत निवारण समिति की बैठक कार्यवाही विवरण कंपनी मुख्यालय/कार्पोरेट कार्यालय को निर्धारित प्रपत्र में अनिवार्य रूप से प्रेषित किया जाना सुनिश्चित करेंगे।
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