वर्षा की बूँदें गिरने पर झील में जिस प्रकार लहरें उठती हैं, उसी मानिद अठखेलियाँ करती वायोलिन व बाँसुरी से निकली मीठी-मीठी धुनें और बुलंद और सुरीली आवाज में घरानेदार गायकी। साथ ही पखावज वादन से गूँजता आसमान । यहाँ बात हो रही है भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन समारोह” के तहत सोमवार को सजी प्रात:कालीन सभा की। इस सभा में संगीत मनीषियों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तानसेन समारोह में प्रातःकालीन सभा की शुरुआत स्थानीय तानसेन संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुई। राग "देशी" और ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे " रघुवर की छवि सुंदर"। पखावज पर पंडित जगत नारायण ने संगत की।
मिसुरी से भी मीठे राग ” गूजरी तोड़ी" में जब हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत के सुप्रसिद्ध वायोलिन वादक श्री कमल कामले ने वायोलिन वादन किया तो मीठे-मीठे सुरों से भरीं सुरीली लहरें हिलोरें लेने लगीं। रसिकों को लगा उनके कानों में मिसुरी घुल गई है। तानसेन समारोह में सोमवार की प्रातःकालीन सभा में पहले कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई।
राग गूजरी तोड़ी दिन के रागों में बडा ही मीठा परंतु कठिन राग है। इस राग का सृजन राजा मानसिंह की प्रेयसी एवं धर्मपत्नी मृगनयनी ने किया था। सुर सम्राट तानसेन द्वारा रचित राग " मियाँ की तोड़ी" में से यदि पंचम हटा दिया जाय तो वह राग गूजरी तोड़ी का रूप ले लेता है। इस राग में गायन-वादन के लिये बहुत रियाज की जरूरत होती है।
श्री कामले ने वायोलिन वादन में राग गूजरी तोड़ी में विलंबित गत एक ताल और द्रुत तीन ताल में प्रस्तुत कर रसिकों का मन जीत लिया। उन्होंने जब प्रसिद्ध ठुमरी “याद पिया की आये” की धुन निकाली तो संपूर्ण प्रांगण विरहमय हो गया। कामले जी ने अपने वादन का समापन राग " परमेश्वरी" में एक धुन निकालकर किया। उनके साथ विख्यात तबला वादक सलीम अल्लाह वाले ने नफासत भरी संगत की।
श्रीकांत कुलकर्णी द्वारा राग "नट भैरव" में प्रस्तुत सुरीले एवं मनमोहक बाँसुरी वादन ने गुणीय रसिकों का मन मोह लिया। उन्होंने इस राग में आलाप जोड़ के बाद झपताल में गत प्रस्तुत की। इसी कड़ी में तीन ताल में गत बजाई। ग्वालियर निवासी श्रीयुत श्रीकांत कुलकर्णी ने सोमवार की प्रातःकालीन सभा में दूसरे कलाकार के रूप में प्रस्तुति दी। उनके साथ तबले पर श्री संजय राठौर एवं बाँसुरी पर श्री श्रेष्ठ कुलकर्णी व श्री अजय सोनी ने संगत की।
तानसेन समारोह में पुणे से पधारे देश के ख्यातिनाम गायक श्री संजीव अभ्यंकर ने जब राग " शुद्ध सारंग" में तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल " सांवरे से प्रीत लागी" का गायन किया तो वातावरण में झील के मानिद सुर लहरियाँ हिलोरें लेने लगीं। अभ्यंकर जी के गायन में उनके गुरू मेवाती घराने के मूर्धन्य संगीत साधक पंडित जसराज की झलक साफ महसूस हो रही थी। उन्होंने अपने गायन का आगाज़ राग शुद्ध सारंग और एक ताल में निबद्ध बड़ा ख्याल " सकल वन लाग रही" से की। बुलंद एवं मधुर आवाज के धनी अभ्यंकर की आलापचारी ने रसिकों पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने मधुभरी आवाज में "मैं तो सांवरे के रंग रांची" भजन सुनाकर अपने गायन को विराम दिया।
संजीव अभ्यंकर मेवाती घराने से ताल्लुक रखते है और ग्वालियर घराने की गायकी में भी सिद्धहस्त हैं। वे मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा दिया जाने वाले कुमार गंधर्व राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित हो चुके हैं। संजीव अभ्यंकर फिल्मी पार्श्व गायन से भी जुड़े हैं। फिल्म गॉडमदर में गीत सुनो रे भाइला के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड मिल चुका है। उनके साथ तबले पर देश के जाने माने तबला वादक श्री हितेन्द्र दीक्षित ने बेहतरीन संगत कर वातावरण में नए रंग बिखेरे।
तानसेन समारोह की सोमवार को सजी चौथी सभा में पं. रामजीलाल शर्मा के पखावज वादन से संगीत प्रेमी अभिभूत हो गए। उन्होंने अपने वादन के लिये ताल-चौताल का चयन किया और गणेश परंत से पखावज वादन की शुरूआत की। पारंपरिक वादन शैली उनके पखावज वादन की विशेषता है, जिसे उन्होंने जीवंत करके दिखाया। पं. रामजीलाल शर्मा के पखावज वादन में कायदे व पलटे का खूबसूरत संयोजन सुनने को मिला। उनके साथ सारंगी पर उस्ताद फारूख लतीफ, हारमोनियम पर उस्ताद सलीम खाँ ने शानदार लहरा संगत की। पखावज सहयोग उनके पुत्र अनुराग शर्मा एवं उपेन्द्र सिंह ने किया। सोमवार की प्रात:कालीन सभा की यह आखिरी प्रस्तुति थी। पं. रामजीलाल शर्मा ख्यातिलब्ध मृदंग कलाकार हैं। “मृदंग सम्राट महाराज पंडित कूदऊ सिंह (दतिया-मध्यप्रदेश) के वंशधर एवं प्रतिनिधि पद्मश्री पंडित अयोध्याप्रसाद के पुत्र होने का उन्हें गौरव है।
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